Jaharveer chalisa-जाहरवीर चालीसा
Jaharveer chalisa-भारत देश में समय-समय पर कई तरह के महापुरुषों, संतों व गुरुओं ने जन्म लिया है जिन्होंने मानव जाति को तरह-तरह के उपदेश दिए हैं और मानवता की रक्षा की है। इसी में एक प्रसिद्ध नाम है जाहरवीर का जिनकी महिमा अपरंपार है। आज हम इस लेख में जाहरवीर चालीसा (Jaharveer Chalisa) का पाठ करने जा रहे हैं। दरअसल सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय के आसपास ही राजस्थान के चुरू जिले में जाहरवीर का जन्म हुआ था जिन्हें बाबा गोरखनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। जाहरवीर चालीसा की चालीसा को रोज ४० बार पाठ करने पर सारे दुःख दूर हो जाते है |
जाहरवीर जिन्हें गोगा या गोगाजी के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने अपने जीवनकाल में मानव जाति की रक्षा व उत्थान के लिए कई तरह के कार्य किये थे। उसी कारण जाहरवीर जी की पूजा उत्तर भारत में मुख्य रूप से की जाती है। ऐसे में आज के इस लेख में हम जाहरवीर जी की चालीसा या गोगा चालीसा (Goga Chalisa) का पाठ करने जा रहे हैं। इसी के साथ आपको गोगा जी की चालीसा का अर्थ भी जानने को मिलेगा। आइये पढ़ें गोगा जी चालीसा (Goga Ji Chalisa) या जाहरवीर चालीसा (Jaharveer Chalisa) संपूर्ण हिंदी अर्थ सहित।
। । दोहा । ।
सुवन केहरी जेवर सुत महाबली रनधीर । ।
बंदौ सुत रानी बाछला विपत निवारण वीर । ।
जय जय जय चौहान वंश गूगा वीर अनूप । ।
अनंगपाल को जीतकर आप बने सुर भूप । । ।
॥ चौपाई ॥
जय जय जय जाहर रणधीरा , पर दुख भंजन बागड़ वीरा । ।
गुरु गोरख का है वरदानी , जाहरवीर जोधा लासानी ।
गौरवरण मुख महा विशाला , माथे मुकट घुंघराले बाला ।
कांधे धनुष गले तुलसी माला , कमर कृपान रक्षा को डाला ।
जन्में गूगावीर जग जाना , ईसवी सन हजार दरमियाना ।
श्री जाहरवीर चालीसा बल सागर गुण निधि कुमारा , दुःखी जनों का बना सहारा ।
बागड़ पति बाछला नन्दन , जेवर सुत हरि भक्त निकन्दन ।
जेवर राव का पुत्र कहाये , माता पिता के नाम बढ़ाये ।
पूरन हुई कामना सारी , जिसने विनती करी तुम्हारी । ।
सन्त उबारे असुर संहारे , भक्त जनों के काज संवारे ।
गूगावीर की अजब कहानी , जिसको ब्याही श्रीयल रानी ।
बाछल रानी जेवर राना , महादुःखी थे बिन सन्ताना । ।
भंगिन ने जब बोली मारी , जीवन हो गया उनको भारी ।
सूखा बाग पड़ा नौलखा , देख – देख जग का मन दुक्खा ।
कुछ दिन पीछे साधू आये , चेला चेली संग में लाये ।
जेवर राव ने कुआं बनवाया , उद्घाटन जब करना चाहा । ।
खारी नीर कुएं से निकला , राजा रानी का मन पिघला ।
रानी तब ज्योतिषी बुलवाया , कौन पाप मैं पुत्र न पाया ।
कोई उपाय हमको बतलाओ , उन कहा गोरख गुरु मनाओ ।
गुरु गोरख जो खुश हो जाई , सन्तान पाना मुश्किल नाई ।
बाछल रानी गोरख गुन गावे , नेम धर्म को न बिसरावे ।
करे तपस्या दिन और राती , एक वक्त खाय रूखी चपाती ।
कार्तिक माघ में करे स्नाना , व्रत इकादशी नहीं भुलाना । ।
पूरनमासी व्रत नहीं छोड़े , दान पुण्य से मुख नहीं मोड़े ।
चेलों के संग गोरख आये , नौलखे में तम्बू तनवाये । ।
मीठा नीर कुएँ का कीना , सूखा बाग हरा कर दीना ।
मेवा फल सब साधु खाए , अपने गुरु के गुण को गाये ।
औघड़ भिक्षा मांगने आए , बाछल रानी ने दुःख सुनाये । ।
औघड़ जान लियो मन माहीं , तप बल से कुछ मुश्किल नाहीं । ।
रानी होवे मनसा पूरी , गुरु शरण है बहुत जरूरी ।
बारह बरस जपा गुरु नामा , तब गोरख ने मन में जाना ।
पुत्र देने की हामी भर ली , पूरनमासी निश्चय कर ली ।
काछल कपटिने गजब गुजारा , धोखा गुरु संग किया करारा ।
बाछल बनकर पुत्र पाया , बहन का दरद जरा नहीं आया ।
औघड़ गुरु को भेद बताया , तब बाछल ने गूगल पाया ।
कर परसादी दिया गूगल दाना , अब तुम पुत्र जनो मरदाना ।
लीली घोड़ी और पण्डतानी , लूना दासी ने भी जानी ।
रानी गूगल बाट के खाई , सब बांझों को मिली दवाई ।
नरसिंह पंडित लीला घोड़ा , भज्जु कुतवाल जना रणधीरा । ।
रूप विकट धर सब ही डरावे , जाहरवीर के मन को भावे ।
भादों कृष्ण जब नौमी आई , जेवर राव के बजी बधाई ।
विवाह हुआ गूगा भये राना , संगलदीप में बने मेहमाना ।
रानी श्रीयल संग ले फेरे , जाहर राज बागड़ का करे ।
अरजन सरजन जने , गूगा वीर से रहे वे तने । ।
दिल्ली गए लड़ने के काजा , अनंग पाल चढे महाराजा ।
उसने घेरी बागड़ सारी , जाहरवीर न हिम्मत हारी । ।
अरजन सरजन जान से मारे , अनंगपाल ने शस्त्र डारे ।
चरण पकड़कर पिण्ड छुड़ाया , सिंह भवन माड़ी बनवाया ।
उसी में गूगावीर समाये , गोरख टीला धूनी रमाये ।
पुण्यवान सेवक वहाँ आये , तन मन धन से सेवा लाए ।
मनसा पूरी उनकी होई , गूगावीर को सुमरे जोई ।
चालीस दिन पढ़े जाहर चालीसा , सारे कष्ट हरे जगदीसा ।
दूध पूत उन्हें दे विधाता , कृपा करे गुरु गोरखनाथा ।