।।श्री पद्मप्रभुजी चालीसा।। Shri Padamprabhu Chalisa

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

पद्मप्रभु भगवान (Padamprabhu Chalisa ) जैन धर्म के छठें तीर्थंकर हैं. भगवान पद्मप्रभु का पावन स्मरण संसार-चक्र से भी तार देता है. तो, चलिए भगवान पद्मप्रभु का ये चालीसा (Padamprabhu Chalisa) करें.

इस पोस्ट में हम प्रस्तुत कर रहे हैं ‘पदमप्रभु चालीसा’ (Padamprabhu Chalisa) का अद्भुत संग्रहण। पदमप्रभु के प्रति भक्ति और श्रद्धा का एक अद्वितीय अनुभव, जिसे इस चालीसा (Padamprabhu Chalisa)के माध्यम से आप अनुभव करेंगे। चालीसा के श्लोक और उनके अर्थ से भरपूर, इस पोस्ट में हम आपको पदमप्रभु के ध्यान में ले जाएंगे। यह चालीसा आपके जीवन में शांति और सुख की कड़ी लेकर आएगी

Shri Padamprabhu Chalisa:

भगवान श्री पदम प्रभु जी का प्रतीक चिन्ह कमल है. उनके इस चालीसा (bhagwan padamprabhu chalisa) के पाठ से भूत-प्रेत आदि तुरंत भाग जाते हैं. जो श्रद्धा को ह्रदय में धारण करके इसका नित्य पाठ करते हैं उनके लिए संसार में कुछ भी दुलर्भ नहीं रहता है. पद्मप्रभु चालीसा के नित्यप्रति पाठ से नेत्रहीन को भी आंखें मिल जाती हैं, सुनने में असमर्थ व्यक्ति भी सुनने की क्षमता प्राप्त कर लेता है और चलने में अक्षम पर्वत लांघने में सक्षम हो जाता है. इतना ही नहीं, भगवान पद्मप्रभु का पावन स्मरण संसार-चक्र से भी तार देता है. तो, चलिए भगवान पद्मप्रभु का ये चालीसा का पाठ  (padamprabhu bhagvan chalisa) करें.

(दोहा)

शीश नवा अरिहन्त को सिद्धन करूँ प्रणाम ।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ।।
सर्व साधु और सरस्वती जिनमंदिर सुखकार ।
पद्मपुरी के पद्म को मन-मंदिर में धार ।।

(चौपाई छन्द)

जय श्री पद्मप्रभ गुणधारी, भवि-जन को तुम हो हितकारी ।
देवों के तुम देव कहाओ, पाप भक्त के दूर हटाओ ।।१।।

तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ, छट्ठे तीर्थंकर कहलाओ ।
तीन-काल तिहुँ-जग को जानो, सब बातें क्षण में पहचानो ।।२।।

वेष-दिगम्बर धारणहारे, तुम से कर्म-शत्रु भी हारे ।
मूर्ति तुम्हारी कितनी सुन्दर, दृष्टि-सुखद जमती नासा पर ।।३।।

क्रोध-मान-मद-लोभ भगाया, राग-द्वेष का लेश न पाया ।
वीतराग तुम कहलाते हो, सब जग के मन को भाते हो ।।४।।

कौशाम्बी नगरी कहलाए, राजा धारण जी बतलाए ।
सुन्दरी नाम सुसीमा उनके, जिनके उर से स्वामी जन्मे ।।५।।

कितनी लम्बी उमर कहाई, तीस लाख पूरब बतलाई ।
इक दिन हाथी बँधा निरखकर, झट आया वैराग उमड़कर ।।६।।

कार्तिक-वदी-त्रयोदशी भारी, तुमने मुनिपद-दीक्षा धारी ।
सारे राज-पाट को तज के, तभी मनोहर-वन में पहुँचे ।।७।।

तपकर केवलज्ञान उपाया, चैत सुदी पूनम कहलाया ।
एक सौ दस गणधर बतलाए, मुख्य वज्रचामर कहलाए ।।८।।

लाखों मुनि अर्यिका लाखों, श्रावक और श्राविका लाखों ।
संख्याते तिर्यंच बताये, देवी-देव गिनत नहीं पाये ।।९।।

फिर सम्मेदशिखर पर जाकर, शिवरमणी को ली परणा कर ।
पंचमकाल महादु:खदाई, जब तुमने महिमा दिखलाई ।।१०।।

जयपुर-राज ग्राम ‘बाड़ा’ है, स्टेशन ‘शिवदासपुरा’ है ।
‘मूला’ नाम जाट का लड़का, घर की नींव खोदने लागा ।।११।।

खोदत-खोदत मूर्ति दिखाई, उसने जनता को बतलाई ।
चिहन ‘कमल’ लख लोग लुगाई, पद्म-प्रभ की मूर्ति बताई ।।१२।।

मन में अति हर्षित होते हैं, अपने दिल का मल धोते हैं ।
तुमने यह अतिशय दिखलाया, भूत-प्रेत को दूर भगाया ।।१३।।

भूत-प्रेत दु:ख देते जिसको, चरणों में लेते हो उसको ।
जब गंधोदक छींटे मारे, भूत-प्रेत तब आप बकारे ।।१४।।

जपने से जब नाम तुम्हारा, भूत-प्रेत वो करे किनारा ।
ऐसी महिमा बतलाते हैं, अन्धे भी आँखें पाते हैं ।।१५।।

प्रतिमा श्वेत-वर्ण कहलाए, देखत ही हृदय  को भाए ।
ध्यान तुम्हारा जो धरता है, इस-भव से वह नर तरता है ।।१६।।

अन्धा देखे गूंगा गावे, लंगड़ा पर्वत पर चढ़ जावे ।
बहरा सुन-सुनकर खुश होवे, जिस पर कृपा तुम्हारी होवे ।।१७।।

मैं हूँ स्वामी दास तुम्हारा, मेरी नैया कर दो पारा ।
चालीसे को ‘चंद्र’ बनावे, पद्म-प्रभ को शीश नवावे ।।१८।।

(सोरठा)

नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन ।
खेय सुगंध अपार, पद्मपुरी में आयके !!
होय कुबेर-समान, जन्म-दरिद्री होय जो ।
जिसके नहिं संतान, नाम-वंश जग में चले ।।

                 

Padamprabhu Chalisa Pdf Download:

 

Leave a Comment